जीतनराम मांझी का विवादित बयान: तेजस्वी यादव पर साधा निशाना

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नई दिल्ली,26 सितम्बर। केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने बिहार की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने तेजस्वी यादव पर टिप्पणी करते हुए कहा, “पहले तो उन्हें अपनी डिग्री बतानी चाहिए। हम तो पढ़े-लिखे हैं। यदि तेजस्वी हमें शर्मा कहते हैं, तो पहले वो अपने पिताजी (जाति) की स्थिति को समझें।”

राजनीतिक
यह बयान जीतनराम मांझी ने उस समय दिया जब बिहार में राजनीतिक गहमागहमी चल रही थी। तेजस्वी यादव, जो कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं, अक्सर अपने बयानों के माध्यम से मांझी और उनकी पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), पर कटाक्ष करते रहे हैं। मांझी का यह बयान उन राजनीतिक वार-पलटवार का एक हिस्सा माना जा रहा है जो बिहार की राजनीति में आम है।

मांझी का तर्क
जीतनराम मांझी ने अपने बयान में यह संकेत दिया कि तेजस्वी यादव को अपनी शैक्षणिक योग्यता और परिवार की पृष्ठभूमि पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक आलोचना करने से पहले, किसी को अपनी स्थिति का आकलन करना चाहिए। यह बयान एक तरह से मांझी की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए भी देखा जा सकता है, जहां वे खुद को पढ़ा-लिखा और सक्षम नेता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।

तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया
हालांकि, तेजस्वी यादव ने इस बयान पर अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं ने मांझी के बयान को हास्यास्पद और राजनीतिक द्वेष के रूप में देखा है। राजद के नेताओं का कहना है कि यह बयान मांझी की राजनीतिक मजबूरी को दर्शाता है और यह दर्शाता है कि वे विपक्षी नेताओं को कमजोर करने के लिए व्यक्तिगत हमलों पर निर्भर हैं।

बिहार की राजनीतिक स्थिति
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण और व्यक्तिगत हमले आम हैं। मांझी का यह बयान उस संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दर्शाता है कि कैसे राजनीतिक नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी मुद्दे का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह बात खासतौर पर तब महत्वपूर्ण होती है जब चुनाव नजदीक होते हैं और नेता अपने आधार को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं।

निष्कर्ष
जीतनराम मांझी का यह बयान बिहार की राजनीतिक माहौल में एक नया मोड़ ला सकता है। जब नेता एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले करते हैं, तो यह चुनावी राजनीति को और भी गरमाता है। अब यह देखना होगा कि तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देती है और यह राजनीतिक विवाद आगे किस दिशा में बढ़ता है। मांझी के बयान ने न केवल राजनीतिक चर्चाओं को ताजा किया है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में व्यक्तिगत और जातिगत समीकरण अभी भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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