झारखंड की राजनीति में फिर से उभरी अस्थिरता: हेमंत सोरेन और JMM के खिलाफ चंपई सोरेन का विद्रोह

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नई दिल्ली, 19अगस्त। भारत का पूर्वी राज्य झारखंड, जो साल 2000 में अस्तित्व में आया, अब अपना 24वां वर्ष पूरा कर रहा है। इस मौके पर एक बार फिर राज्य की राजनीति अपने पुराने अस्थिर दौर से गुजर रही है। राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के भीतर उभर रहे विद्रोह के कारण स्थिति और भी जटिल हो गई है। झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ उनके ही करीबी माने जाने वाले चंपई सोरेन ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया है। इस घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।

चंपई सोरेन का विद्रोह
चंपई सोरेन, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता और हेमंत सोरेन के करीबी सहयोगी माने जाते थे, अब पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ खुलकर विद्रोह कर रहे हैं। चंपई सोरेन ने पार्टी नेतृत्व पर आरोप लगाया है कि वे आदिवासी हितों को नजरअंदाज कर रहे हैं और पार्टी की मूल विचारधारा से भटक रहे हैं। उन्होंने खुलासा किया कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है।

हेमंत सोरेन के नेतृत्व पर सवाल
चंपई सोरेन के विद्रोह ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हेमंत सोरेन, जो अपने पिता और पार्टी के संस्थापक शिबू सोरेन की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, को अब पार्टी के भीतर ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह विद्रोह न केवल हेमंत सोरेन की राजनीतिक पकड़ को कमजोर कर सकता है, बल्कि राज्य की सरकार के स्थायित्व पर भी असर डाल सकता है।

झारखंड की राजनीति में अस्थिरता
झारखंड की राजनीति में अस्थिरता कोई नई बात नहीं है। राज्य के गठन के बाद से ही यहां की सरकारें स्थायित्व के संकट का सामना करती रही हैं। बार-बार बदलती सरकारों और राजनीतिक गठबंधनों ने राज्य को एक स्थायी नेतृत्व से वंचित रखा है। चंपई सोरेन का विद्रोह भी इसी अस्थिरता का एक और उदाहरण है, जो झारखंड की राजनीति को और भी जटिल बना सकता है।

आगे की राह
झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर उभरते इस विद्रोह का क्या परिणाम होगा, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि हेमंत सोरेन और उनकी सरकार को अब आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। चंपई सोरेन का यह विद्रोह पार्टी की एकता और नेतृत्व की क्षमता पर सवाल खड़े करता है। यदि इन मुद्दों का समाधान जल्द नहीं निकाला गया, तो झारखंड की राजनीतिक स्थिति और भी खराब हो सकती है।

निष्कर्ष
झारखंड, जो अपनी 24वीं वर्षगांठ मना रहा है, एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है। चंपई सोरेन का विद्रोह हेमंत सोरेन और JMM के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। राज्य की राजनीति में स्थिरता और विकास के लिए पार्टी के भीतर के इन मतभेदों का समाधान निकालना बेहद जरूरी है। अन्यथा, झारखंड की राजनीति एक बार फिर पुराने अस्थिर दौर में वापस जा सकती है।

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