65% आरक्षण मसले पर सुप्रीम कोर्ट में भी मिलेगी बिहार सरकार को हार? यहां जानें क्या बोले वकील

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पटना, 22जून। आरक्षण के मसले पर आज पटना हाइकोर्ट में बिहार सरकार को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. पिछले साल जातिगत जनगणना के आधार पर राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में SC-ST, OBC और EBC को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया था. राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ भागवत शर्मा समेत कई याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. बीते 11 मार्च को पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच नेसुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था.

याचिकाकर्ता भागवत कुमार बनाम राज्य सरकार के मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से विशाल कुमार और अमित आनंद पेश हुए. एडवोकेट विशाल कुमार ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार का यह संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन हैं.

हाइकोर्ट में क्यों हार गई बिहार सरकार
एडवोकेट विशाल कुमार ने हाइकोर्ट के इस फैसले को विस्तार से समझाते हुए बताया किमाननीय पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुए रोक लगा दी है.

मुख्य न्यायाधीश विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार की खंडपीठ ने कहा कि ये संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन हैं. इसके साथ ही माननीय खंडपीठ ने यह भी माना कि ये संशोधन विरोधाभासी है और इंदिरा साहनी के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा रखी गई 50% की सीमा का उल्लंघन है. ये संशोधन बिहार सरकार द्वारा हाल ही में किए गए जनगणना सर्वेक्षण पर आधारित था, जिसके आधार पर पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के लिए आरक्षण का लाभ 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया था.

यह संशोधन किसी वर्ग के जनसंख्या के आधार पर दिया गया था जबकि आरक्षण का लाभ केवल तभी दिया जा सकता है जब किसी वर्ग को विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों या विभिन्न पदों और सेवाओं पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है. इसलिए, पटना उच्च न्यायालय ने संशोधनों को खारिज कर दिया और माना कि वे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है . यानि कि यह समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है.

सुप्रीम कार्ट में भी मिलेगी हार
पटना हाईकोर्ट से मिली हार के बाद अब चर्चा है कि बिहार सरकार इस फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दे सकती है. इसपर एडवोकेट विशाल कुमार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में भी बिहार सरकार को हार का सामना करना पड़ेगा. इसके कई वजह है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में यह कहा कि आरक्षण को 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता जबतक कोई खास कारण ना हो.

इंदिरा साहनी के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा रखी रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी तय की गई है. इसके साथ ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. इस वजह से सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी.

बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 7 नवंबर 2023 को विधानसभा में घोषणा करते हुए कहा कि सरकार बिहार में आरक्षण के दायरे को बढ़ाएगी. 50 फीसदी से इसे 65 या उसके ऊपर ले जाएंगे. सरकार कुल आरक्षण 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करेगी.

सीएम के ऐलान के तुरंत बाद कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई थी. ढाई घंटे के अंदर कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी. इसके बाद इसे शीतकालीन सत्र के चौथे दिन 9 नवंबर को विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित भी कर दिया गया था.

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