कोलकाता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला—नाबालिग भी ले सकेंगे अग्रिम जमानत, जुवेनाइल न्याय प्रणाली में आया अहम बदलाव
कोलकाता , 15 नवम्बर 2025 । कोलकाता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि नाबालिग (माइनर) भी अग्रिम जमानत यानी anticipatory bail ले सकते हैं। यह फैसला जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम की व्याख्या और अधिकारों के दायरे को लेकर बेहद अहम माना जा रहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि नाबालिग होने भर से किसी भी बच्चे को कानून की उस सुरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता, जो एक आरोपी को गिरफ्तारी से पहले मिलती है।
कोलकाता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अब किसी भी अपराध में आरोपी नाबालिग (juvenile) भी एंटीसिपेटरी बेल के लिए आवेदन कर सकेंगे। इससे पहले सिर्फ बालिग आरोपियों को ही गिरफ्तारी से पहले जमानत लेने का हक था।
तीन जजों की डिवीजन बेंच ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट तब लागू होता है जब नाबालिग पकड़ा जाता है और उसे जुवेनाइल बोर्ड के सामने पेश किया जाता है। लेकिन अग्रिम जमानत तो गिरफ्तारी से पहले का अधिकार है, ताकि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रहे।
यह फैसला जस्टिस जय सेनगुप्ता, जस्टिस तीर्थंकर घोष और जस्टिस बिवास पटनायक की बेंच ने दिया। देश के किसी भी हाईकोर्ट की तरफ से सुनाया गया इस तरह का यह पहला फैसला है।
तीन जजों का फैसला- 4 पॉइंट में
- 2 जज सहमत: जस्टिस जय सेनगुप्ता और जस्टिस तीर्थंकर घोष ने फैसले पर सहमति देते हुए कहा कि अगर यह मान लिया जाए कि नाबालिगों को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी, तो इसका मतलब होगा कि बच्चों से वह अधिकार छीन लेना जो बालिगों को मिलता है, और यह बात बच्चों की भलाई वाली सोच के खिलाफ है।
- संविधान में दी गई व्यक्तिगत आजादी को कम करने का कोई इरादा लॉ बनाने वालों का नहीं था। इसलिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, जो बच्चों की भलाई के लिए बना है, उसे ऐसा कानून नहीं माना जा सकता जो बच्चों को किसी दूसरे फायदे वाले कानूनी अधिकार जैसे अग्रिम जमानत से रोके, जब तक कि एक्ट में इसे साफ-साफ मना न किया गया हो।
- अगर किसी नाबालिग को अग्रिम जमानत दी जाती है, तो कोर्ट ऐसे बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसा नियम बना सकता है, ताकि यह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के काम में दखल न दे। JJ बोर्ड का अधिकार तभी शुरू होता है जब बच्चा गिरफ्तार किया जाता है।
- 1 जज असहमत: हालांकि, तीसरे जज जस्टिस बिवास पटनायक इससे सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि नाबालिगों को अग्रिम जमानत देने की अनुमति से जेजे एक्ट द्वारा बनाई गई बच्चों की सुरक्षा वाली व्यवस्था कमजोर हो सकती है। एक्ट में गिरफ्तारी के बाद बच्चों के लिए एक खास, कल्याण-आधारित जांच प्रक्रिया तय की गई है और अग्रिम जमानत इसे प्रभावित कर सकती है।
समाज और बच्चों के अधिकारों पर प्रभाव
यह फैसला नाबालिगों के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक संवेदनशील, पारदर्शी और अधिकार-सम्पन्न बनाता है।
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बाल अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ेगी
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परिवारों में कानूनी समर्थन का भरोसा मजबूत होगा
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कानून व्यवस्था में बच्चों के साथ भेदभाव की संभावना कम होगी
यह निर्णय उन सभी मामलों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है, जहाँ बच्चे किसी कारणवश कानून की गिरफ्त में आते हैं।