मोक्षदा एकादशी : जीवन का उत्तर, आत्मा का मार्ग

आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी है — मोक्षदा एकादशी, वह पावन दिवस जब मानव आत्मा को मोक्ष का द्वार खुला मिलता है। आज गीता जयंती भी है — वह अनुपम क्षण जब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के रणभूमि में अर्जुन के मौन, भय और भ्रम को तोड़कर सत्य का उजाला जगाया।

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लेकिन क्या आप जानते हैं? कुरुक्षेत्र केवल इतिहास का मैदान नहीं…
यह हमारे भीतर रोज़ होने वाला युद्ध है।

जहाँ एक ओर

  • हमारे संस्कार और सत्य खड़े हैं और दूसरी ओर

  • लोभ, अहंकार, और भय लगातार हमला कर रहे हैं।

अर्जुन केवल वह योद्धा नहीं था जो धनुष थामे खड़ा है… अर्जुन हम हैं।
और श्रीकृष्ण? हमारे अंतर्मन की वह आवाज़ जो हमेशा कहती है — उठो, डरो मत, तुम जन्मे ही विजय के लिए हो।

गीता कहती है — चिंता और भ्रम हार की शुरुआत हैं।

कृष्ण के शब्द आज भी समय की धूल से मुक्त वही नया प्रकाश देते हैं:

  • कर्म करो, फल की चिंता छोड़ो
    क्योंकि चिंता, एक क्षण को पकड़कर पूरे जीवन को कैद कर लेती है।

  • धर्म वही है जो आत्मा को हल्का करे
    झूठ, छल, और दिखावा… आत्मा को बोझिल कर देते हैं।

  • भय वहीं होता है जहाँ भरोसा कमजोर पड़ जाए
    और भरोसा वहीं से जगता है जहाँ कृष्ण को मार्गदर्शक माना जाए।

मोक्ष क्या है?

मोक्ष केवल शरीर का विमोचन नहीं…
मोक्ष…

  • उन उलझनों से मुक्ति है जो हमें सोने नहीं देतीं

  • बेटर बनने की उस जिद से आज़ादी है जो हमें थका देती है

  • अपने सत्य स्वरूप को पहचान लेने का नाम है

मोक्ष तब मिलता है…
जब आत्मा का नेत्र खुल जाए — और जीवन का धर्म समझ में आ जाए।

आज का संकल्प

आज स्वयं से यही कहना है —
“मैं अपनी चिंता का युद्ध स्वयं जीतूंगा।
मैं अपने धर्म के लिए खड़ा रहूंगा।
मैं कर्म को पूजा बनाऊंगा।
मैं भीतर के कृष्ण पर विश्वास रखूंगा।”

इसी का नाम मोक्ष है।
और यही गीता जयंती  का संदेश है —
युद्ध से मत भागो…
अपने भीतर के योद्धा को जगाओ।

हर जीवन में कृष्ण हैं।

हर मन में अर्जुन है।
आज बस संवाद को जगाना है।

(Geeta Jayanti Special Blog for Rashtriya Ujala)

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