जियाउल हक हत्याकांड: सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 10 दोषियों को सुनाई उम्रकैद, माता-पिता ने संतोष, लेकिन न्याय में देरी पर जताई निराशा
प्रयागराज,10 अक्टूबर। बहुचर्चित जियाउल हक हत्याकांड में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने बुधवार को सभी 10 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला हक के परिवार और उनके समर्थकों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है, जो सालों से न्याय की लड़ाई लड़ रहे थे। सजा के ऐलान के बाद जियाउल हक के माता-पिता ने खुशी जाहिर की, लेकिन साथ ही न्याय में देरी को लेकर अपनी निराशा भी व्यक्त की।
मामला और सजा का ऐलान
जियाउल हक, जो कि एक पुलिस अधिकारी थे, की हत्या 2013 में प्रतापगढ़ जिले के कुंडा में हुई थी। इस मामले में कुल 10 लोगों को दोषी ठहराया गया था, जिनमें स्थानीय राजनेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम भी शामिल थे। सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ली थी और एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद बुधवार को स्पेशल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।
कोर्ट ने दोषियों को उम्रकैद की सजा दी, जो कि परिवार के लिए एक अहम जीत के रूप में देखी जा रही है। हक के माता-पिता ने इस पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन यह भी कहा कि उन्हें न्याय पाने में बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा।
न्याय में देरी पर परिवार की प्रतिक्रिया
जियाउल हक के पिता ने सजा के ऐलान के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा, “हम खुश हैं कि हमारे बेटे के हत्यारों को सजा मिली, लेकिन यह न्याय बहुत देर से मिला। 11 साल से हम इस दिन का इंतजार कर रहे थे। अगर न्याय समय पर मिलता, तो हमारे दर्द का कुछ हद तक मरहम लग सकता था।”
उनकी माता ने भी भावुक होकर कहा, “हमारा बेटा वापस नहीं आ सकता, लेकिन हमें यह संतोष है कि दोषियों को उनके कर्मों की सजा मिली। न्याय मिलने में जो देरी हुई, उसने हमारे घावों को और गहरा कर दिया।”
कानूनी प्रक्रिया और राजनीति
यह मामला केवल एक हत्या का नहीं था, बल्कि इसके राजनीतिक और सामाजिक पहलू भी काफी गहरे थे। जियाउल हक की हत्या के बाद प्रदेश में बड़े स्तर पर राजनीतिक उथल-पुथल मच गई थी। उस समय के कई राजनेता इस मामले में चर्चा का विषय बने थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सीबीआई को सौंपा गया, जिसने विस्तृत जांच के बाद दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया।
निष्कर्ष
सजा का ऐलान जियाउल हक के परिवार के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, लेकिन न्याय में हुई देरी ने इस फैसले की मिठास को कुछ हद तक फीका कर दिया है। यह मामला एक बार फिर से इस तथ्य को उजागर करता है कि न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी लाने की जरूरत है, ताकि पीड़ित परिवारों को समय पर न्याय मिल सके।