सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त आर्मी अफसर की अपील खारिज की

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नई दिल्ली, 25  नवम्बर 2025 । सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस बर्खास्त आर्मी अफसर की अपील खारिज कर दी, जिसे अनुशासनहीनता और सेवा नियमों के गंभीर उल्लंघन के आरोपों में सेना से हटाया गया था। अफसर ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए दावा किया था कि उसके खिलाफ की गई कार्रवाई मनमानी, पक्षपातपूर्ण और बिना उचित आधार के थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सेना द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड, कोर्ट मार्शल में दर्ज बयान और आंतरिक जांच की प्रक्रियाओं की समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष दिया कि बर्खास्तगी नियमों के तहत सही, तार्किक और तथ्यात्मक आधार पर की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस बर्खास्त आर्मी अफसर की अपील खारिज कर दी, जिसे अनुशासनहीनता और सेवा नियमों के गंभीर उल्लंघन के आरोपों में सेना से हटाया गया था। अफसर ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए दावा किया था कि उसके खिलाफ की गई कार्रवाई मनमानी, पक्षपातपूर्ण और बिना उचित आधार के थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सेना द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड, कोर्ट मार्शल में दर्ज बयान और आंतरिक जांच की प्रक्रियाओं की समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष दिया कि बर्खास्तगी नियमों के तहत सही, तार्किक और तथ्यात्मक आधार पर की गई थी।

पहले इस पूरे मामले को समझिए

यह मामला 2017 का है। अफसर सैमुअल कमलेसन 3rd कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट बने। उनकी यूनिट में मंदिर और गुरुद्वारा था, जहां हर हफ्ते धार्मिक परेड होती थी। वे अपने सैनिकों के साथ वहां तक जाते थे, लेकिन मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से में पूजा, हवन या आरती के दौरान जाने से मना करते थे।

उनका कहना था कि उनकी ईसाई मान्यता इसकी अनुमति नहीं देती और उनसे किसी देवी-देवता की पूजा करवाना गलत है। अफसर का आरोप था कि एक कमांडेंट लगातार उन पर दबाव डालता था और इसी वजह से मामला बढ़ा।

दूसरी ओर सेना ने कहा कि उन्होंने कई बार समझाने के बाद भी रेजिमेंटल परेड में पूरी तरह हिस्सा नहीं लिया, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है। लंबे समय तक चली जांच और सुनवाई के बाद उन्हें 2021 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

न्यायालय के अनुसार, संबंधित अधिकारी को पर्याप्त अवसर दिए गए, उसका पक्ष सुना गया और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ही दोष सिद्ध किया गया। अतः उसकी बर्खास्तगी को बहाल करने की कोई कानूनी या प्रक्रियागत वजह नहीं पाई गई।

यह फैसला सेना में अनुशासन, आचरण और ज़िम्मेदारी की उच्चतम अपेक्षाओं को दोहराता है और यह संदेश देता है कि वरिष्ठ या जूनियर, किसी भी स्तर पर नियमों का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है।

CJI: आप सौ मामलों में अच्छे हों, लेकिन ये गलती बहुत बड़ी है। ये छूट नहीं दी जा सकती। अनुशासन से समझौता नहीं। याचिका खारिज की जाती है। हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखेगा।

दिल्ली HC ने कहा था- अफसर ने अपने धर्म को सबसे ऊपर रखा

दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 मई को सेना के फैसला को सही ठहराया था। हाईकोर्ट ने माना था कि अफसर के व्यवहार से रेजिमेंट की एकजुटता, अनुशासन और सेक्युलर मूल्यों को नुकसान पहुंचा।

कोर्ट ने सेना में ऐसे व्यवहार को युद्ध स्थितियों में नुकसानदेह बताया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कमलेसन ने अपने सीनियर अफसरों के आदेश से ऊपर अपने धर्म को रखा। यह स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है।

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