नई दिल्ली, भारतीय क्रिकेट हमेशा से रणनीति, चयन और नेतृत्व के जटिल संतुलन पर टिका रहा है। जब भी टीम का प्रदर्शन उम्मीदों से नीचे जाता है, सवाल खड़े होते हैं—और हाल के समय में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या टीम इंडिया कुछ गलत निर्णयों का खामियाज़ा आज भुगत रही है, खासकर वे निर्णय जो गौतम गंभीर की राय या प्रभाव से जुड़े माने जा रहे हैं।
गंभीर को एक स्पष्टवादी, आक्रामक और शार्प क्रिकेटिंग माइंड माना जाता है। बतौर खिलाड़ी उन्होंने देश को कई यादगार जीत दिलाईं—खासतौर पर 2007 T20 विश्व कप और 2011 वनडे विश्व कप में उनके योगदान को कोई नहीं भुला सकता। लेकिन एक खिलाड़ी और एक रणनीतिकार/मेंटॉर की भूमिका में अंतर होता है। यही अंतर आज चर्चा का विषय बना हुआ है।
गुवाहाटी टेस्ट में भारत हार की कगार पर है। साउथ अफ्रीका ने कोलकाता में पहला टेस्ट जीता था, दूसरा मैच जीतकर टीम सीरीज में 2-0 से क्लीन स्वीप कर लेगी। अगर ऐसा हुआ तो गौतम गंभीर की कोचिंग में भारत 13 महीने के अंदर दूसरी बार घरेलू कंडीशन में क्लीन स्वीप हो जाएगा। 2024 में न्यूजीलैंड ने 3-0 से हराया था।
टेस्ट में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद कोच गंभीर की जमकर आलोचनाएं हो रही हैं। पूर्व भारतीय क्रिकेटर अतुल वासन ने तो यहां तक कह दिया कि गंभीर को टेस्ट से हटा देना चाहिए। उनकी जगह राहुल द्रविड़ को फिर से लाना चाहिए। वहीं पूर्व सिलेक्टर सबा करीम ने कहा कि टीम इंडिया टेस्ट खेलना ही भूल चुकी है।
गौतम गंभीर की कोचिंग में टीम इंडिया व्हाइट बॉल के साथ रेड बॉल क्रिकेट में भी ऑलराउंडर्स पर बहुत ज्यादा जोर देने लगी। इसका असर ये हुआ कि टीम में 3 या 4 स्पेशलिस्ट बल्लेबाजों को ही मौका मिल पा रहा है। साउथ अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में तो भारत ने दोनों टेस्ट में 3-3 स्पेशलिस्ट बैटर्स को ही खिलाया। यशस्वी जायसवाल और केएल राहुल ने दोनों टेस्ट खेले, वहीं पहले में शुभमन गिल और दूसरे में साई सुदर्शन को मौका मिला।
पहले मैच में भारत के 3 बैटर्स स्पिन पिच पर कुछ खास नहीं कर सके, लेकिन दूसरे मुकाबले की पहली पारी में तीनों ने 95 रन बनाए। जबकि 4 से 7 नंबर के बल्लेबाज मिलकर 23 रन ही बना सके। ऋषभ पंत और ध्रुव जुरेल जैसे खिलाड़ी तो रिस्की शॉट खेलने की कोशिश में अपना विकेट दे बैठे। जबकि इस फॉर्मेट में इन शॉट्स की कुछ खास जरूरत भी नहीं रहती।
भारतीय क्रिकेट एक संक्रमण काल से गुजर रहा है। नेतृत्व संरचना बदल रही है, नई पीढ़ी आ रही है, और टीम अपनी ‘नई पहचान’ तलाश रही है। यह सवाल कि क्या गंभीर की गलतियों का खामियाज़ा टीम भुगत रही है, बहस का विषय ज़रूर है, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण है—आगे की रणनीति, स्थिरता और स्पष्ट नेतृत्व।