राष्ट्रपति चयन के दौर की अनकही कहानी: कलाम की जगह वाजपेयी को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी भाजपा
नई दिल्ली, 17 दिसंबर 2025 । भारतीय राजनीति के इतिहास से जुड़ी एक अहम और कम चर्चित बात सामने आती है कि एक समय भारतीय जनता पार्टी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जगह अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति बनाने पर विचार कर रही थी। यह वह दौर था जब देश को एक सर्वमान्य, गरिमामय और राजनीतिक संतुलन साधने वाले राष्ट्रपति की आवश्यकता महसूस हो रही थी। उसी पृष्ठभूमि में यह विमर्श सामने आया, जिसने राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा पैदा की थी।
भारत के 11वें राष्ट्रपति के लिए भाजपा ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति पद ऑफर किया था। पूर्व PM वाजपेयी के करीबी अशोक टंडन ने अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में इसका खुलासा किया है।
इस किताब के मुताबिक भाजपा ने वाजपेयी से कहा था, ‘पार्टी चाहती है कि आपको राष्ट्रपति भवन चले जाना चाहिए। आप प्रधानमंत्री पद लाल कृष्ण आडवाणी को सौंप दीजिए।’ हालांकि, वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को साफ ठुकरा दिया।
टंडन के अनुसार, वाजपेयी ने कहा था- मैं इस तरह के किसी कदम के पक्ष में नहीं हूं। मैं इस फैसले का समर्थन नहीं करूंगा। टंडन ने 17 दिसंबर, 2025 को वाजपेयी की बर्थ एनिवर्सरी पर ‘अटल स्मरण’ किताब लॉन्च की है।
यह किताब जीवन, व्यक्तित्व, और राजनीतिक यात्रा पर आधारित है। टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार थे। वहीं, वाजपेयी 1999 से 2004 तक, 5 साल का पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले देश के पहले गैर-कांग्रेसी PM थे।
हालांकि, इसी दौरान डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम सामने आया, जिन्होंने वैज्ञानिक, मिसाइल मैन और राष्ट्रनिर्माता के रूप में देशभर में अलग पहचान बना रखी थी। कलाम का नाम सामने आते ही राजनीतिक दलों के बीच एक व्यापक सहमति बनने लगी। उनका गैर-राजनीतिक व्यक्तित्व, सरल जीवन और राष्ट्र के प्रति समर्पण उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बना रहा था।
भाजपा और अन्य दलों के भीतर विचार-विमर्श के बाद यह महसूस किया गया कि कलाम को राष्ट्रपति बनाना देश के लिए एक सकारात्मक संदेश होगा। इससे राजनीति से ऊपर उठकर एक ऐसे व्यक्तित्व को सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठाने का अवसर मिलेगा, जो युवाओं और आम जनता के लिए प्रेरणा स्रोत बन सके। अंततः इसी सहमति के तहत डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया।
यह फैसला भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। डॉ. कलाम का राष्ट्रपति बनना न केवल राजनीतिक संतुलन का प्रतीक था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि देश में सर्वोच्च पद के लिए योग्यता, सादगी और राष्ट्रीय योगदान को कितना महत्व दिया जाता है। वाजपेयी और कलाम—दोनों ही व्यक्तित्व भारतीय राजनीति और समाज के लिए अमूल्य धरोहर रहे हैं, और राष्ट्रपति चयन की यह अनकही कहानी आज भी चर्चा का विषय बनी रहती है।