सरकार ने वापस लिया — फोन में पहले से इंस्टाल “संचार साथी” एप लगाने का प्लान: क्या हुआ और क्यों यह फैसला मायने रखता है

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नई दिल्ली, 03 दिसंबर 2025 । हाल ही में यह खबर आई कि सरकार — जिसने नए स्मार्टफोनों में ‘संचार साथी’ एप प्रीलोड (पहले से इंस्टॉल) करने का प्रस्ताव रखा था — ने अब उस प्रस्ताव को वापस ले लिया है। यह बदलाव डिजिटल गोपनीयता, उपयोगकर्ता स्वतंत्रता, और टेक-निर्माताओं की आज़ादी से जुड़ी बहसों के बीच हुआ।

केंद्र सरकार ने मोबाइल फोन पर ‘संचार साथी’ एप के प्री-इंस्टॉलेशन (पहले से डाउनलोड) के फैसले को वापस ले लिया है। टेलिकॉम डिपार्टमेंट ने कहा कि संचार साथी एप की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए सरकार ने मोबाइल बनाने वाली कंपनी के लिए प्री-इंस्टॉलेशन की अनिवार्यता खत्म कर दी है।

टेलिकॉम डिपार्टमेंट ने बताया कि बुधवार दोपहर 12 बजे तक 1.40 करोड़ डाउनलोड हो चुके हैं। दो दिन में अपनी मर्जी से एप डाउनलोड करने वालों की संख्या में 10 गुना बढ़ोतरी हुई है।

उधर केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि संचार साथी एप से जासूसी करना न तो संभव है, न ही जासूसी होगी। सिंधिया ने एप को लेकर कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा के सवालों के जवाब पर कहा- फीडबैक पर मंत्रालय ने एप इंस्टॉल करने के आदेश में बदलाव किया है।

संचार साथी एप को लेकर पूरा विवाद 28 नवंबर को शुरू हुआ, जब दूरसंचार विभाग (DoT) ने सभी मोबाइल फोन निर्माताओं को एक आदेश जारी किया था। इसमें कंपनियों को भारत में बेचे जाने वाले सभी नए मोबाइल फोन के साथ-साथ मौजूदा हैंडसेटों में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए एप इंस्टॉल करना कंपलसरी कर दिया था।

विपक्ष ने इसे नागरिकों की ‘जासूसी’ का प्रयास बताते हुए केंद्र सरकार पर ‘तानाशाही’ थोपने का आरोप लगाया। कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने मंगलवार को राज्यसभा में कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया। हालांकि इस पर चर्चा नहीं हो सकी।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा- यह कदम लोगों की प्राइवेसी पर सीधा हमला है। यह एक जासूसी एप है। सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है। साइबर धोखाधड़ी रोकने लिए सिस्टम जरूरी है, लेकिन सरकार का यह आदेश लोगों की निजी जिंदगी में अनावश्यक दखल जैसा है।

सरकार का संचार साथी ऐप को प्रीलोड करने का प्रस्ताव — और फिर उसे वापस लेना — दिखाता है कि डिजिटल नीतियाँ सिर्फ टेक-फीचर्स नहीं, बल्कि नागरिकों की आज़ादी, गोपनीयता और भरोसे का सवाल भी होती हैं। उपयोगकर्ता की स्वतंत्रता और निज़ी डेटा की सुरक्षा की भावना के समर्थन में यह फैसला स्वागत योग्य है।

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