केरल हाईकोर्ट बोला – कमाने की क्षमता होने पर भी पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार, क्योंकि वैवाहिक दायित्व सिर्फ आय पर नहीं बल्कि सम्मान और सुरक्षा पर आधारित हैं
केरल , 26 नवम्बर 2025 । केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि पत्नी यदि कमाने में सक्षम हो या उसकी संभावित आय हो, तब भी वह गुजारा भत्ता (Maintenance/Alimony) की हकदार हो सकती है, बशर्ते वह वास्तव में स्वयं को आर्थिक रूप से संभालने की स्थिति में न हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता केवल आय का संतुलन नहीं है, बल्कि वैवाहिक जिम्मेदारियों की निरंतरता और महिला के सम्मान व सुरक्षा का कानूनी विस्तार है।
केरल हाईकोर्ट ने तलाक के केस में मंगलवार को कहा कि अगर पत्नी कमाने के काबिल है, लेकिन उसकी आमदनी स्थायी नहीं है या अपना खर्च नहीं उठा पा रही है, तो वह भरण-पोषण की हकदार है। उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस कौसर एडप्पगाथ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कमाई करने की क्षमता और वास्तव में पर्याप्त कमाई करने में फर्क है। मामला एक महिला की याचिका से जुड़ा है, जिसने वह अपने पति से अलग रहने के बाद अपने और दो बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग की थी।
महिला ने बताया कि वह सिलाई जानती है, लेकिन स्थायी काम नहीं है और आमदनी भी पर्याप्त नहीं है। उसने पति पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाया और कहा कि इसी कारण वे अलग रह रहे हैं।
पहले मामले को जानिए
यह मामला केरल का है। महिला का आरोप है कि पति उसके साथ मारपीट करता था। इसके कारण दोनों अलग रह रहे थे। दोनों के दो बच्चे हैं, जो महिला के साथ रहते हैं। महिला ने बच्चों और अपने लिए पति से भरण-पोषण की मांग की थी।
महिला ने बताया कि सिलाई का काम जानती है, लेकिन उसकी कमाई दोनों बच्चों और खुद के भरण-पोषण के लिए काफी नहीं है। महिला ने बताया कि उसे हर रोज काम भी नहीं मिलता। जबकि उसका पति भी एक दर्जी है और वह पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण देने के लिए पर्याप्त कमाता है। महिला ने अपने पति से अपने लिए ₹15,000 प्रति माह और अपने दोनों बच्चों के लिए ₹10-10 हजार रुपए प्रति माह भरण-पोषण की मांग की थी। केरल हाईकोर्ट का यह फैसला महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करता है और यह दोहराता है कि गुजारा भत्ता का अधिकार केवल आर्थिक गणित नहीं बल्कि मानवीय, सामाजिक और वैवाहिक न्याय का हिस्सा है।
यह निर्णय विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए राहत है जो संभावित आय तो रखती हैं, पर वास्तविक आर्थिक स्वतंत्रता अभी भी दूर है।