सेवक-स्वायत्तता vs सेन्य अनुशासन: Christian आर्मी अफसर की बर्खास्तगी पर बहस

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नई दिल्ली, 25  नवम्बर 2025 । हाल ही में भारतीय सेना के एक क्रिश्चियन अधिकारी (लेफ्टिनेंट सैमुएल कैमलेसन) की बर्खास्तगी (डिसमिसल) ने धार्मिक स्वतंत्रता, अनुशासन और सेना की एकजुटता के बीच संतुलन को केंद्र में ला दिया है। अधिकारी ने अपने विश्वास के कारण गुरुद्वारा (गुरुद्वारा + मंदिर परिसर) में धार्मिक परेड के दौरान पूजा या अंदरूनी हिस्से में प्रवेश करने से इनकार किया था और उसे इस वजह से सेवा से हटा दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सैमुअल कमलेसन नाम के एक क्रिश्चियन आर्मी अफसर को फटकार लगाई, जिसे गुरुद्वारे जाने से मना करने पर सेना ने बर्खास्त कर दिया था। कोर्ट ने अफसर को झगड़ालू और आर्मी के लिए मिसफिट करार दिया।

चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सिख सैनिकों की आस्था का सम्मान न करने के कारण क्रिश्चियन अफसर को नौकरी से हटाने के फैसले का समर्थन किया।

व्यक्तिगत आस्था और संस्थागत ज़िम्मेदारी का टकराव

इस पूरे घटनाक्रम से सामने आता है कि सेन्य जीवन में व्यक्तिगत धार्मिक विश्वास और संस्थागत ज़रूरतें अक्सर टकरा सकती हैं

  • लेफ्टिनेंट कैमलेसन की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि धार्मिक आज़ादी की सीमाएँ संभवतः तब आती हैं, जब वह समूह की एकता और सैन्य फंक्शनिंग पर असर डालती हो।

  • अदालतों और सेना प्रबंधन के लिए यह एक संदेश है: अनुशासन और आदेश की भी अपनी अहमियत है, और यह केवल “अनुचित धार्मिक दबाव” नहीं है, बल्कि एक प्रणालीगत आवश्यकता भी हो सकती है।

  • भविष्य में इस मामले से यह उम्मीद की जा सकती है कि सेना और अन्य संस्थाएँ धार्मिक विविधता के प्रति और अधिक संवेदनशील नीतियाँ अपनाएं, ताकि हर अधिकारी सम्मानपूर्वक अपनी आस्था के अनुरूप जीवन जीते हुए भी टीम भावना में योगदान दे सके।

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