नई दिल्ली, 06 नवम्बर 2025 । हर्बल और आयुर्वेदिक उत्पादों की प्रमुख कंपनी पतंजलि ने एक बार फिर सीधी टक्कर का रास्ता अपना लिया है। इस बार निशाने पर हैं बाजार में उपलब्ध दूसरे ब्रांडों के च्यवनप्राश। पतंजलि ने अपने नए विज्ञापन और प्रमोशनल अभियान में दावा किया कि कई ब्रांड उपभोक्ताओं को “असली च्यवनप्राश” के नाम पर भ्रमित कर रहे हैं, और उनकी क्वालिटी व सामग्री पारंपरिक आयुर्वेदिक मानकों से मेल नहीं खाती। Company का सीधा आरोप है कि कई उत्पाद सिर्फ नाम पर च्यवनप्राश हैं, असलियत में नहीं।
कंपनी के प्रवक्ताओं और आयुर्वेद विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक और शास्त्रीय च्यवनप्राश में आंवला, हर्बल मिश्रण, घी, शहद और असली औषधीय जड़ी-बूटियों का सही अनुपात होना जरूरी है, लेकिन कई ब्रांड कॉर्न सिरप, प्रिजर्वेटिव और फ्लेवरिंग एजेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं—जिससे उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य लाभ की जगह सिर्फ मिठास और मार्केटिंग मिलती है।
पतंजलि एक बार फिर अपने विज्ञापन को लेकर विवादों में घिर गई है। दरअसल, कंपनी ने च्यवनप्राश के ऐड में दूसरी कंपनियों के ब्रांड को धोखा कहा था। इसको लेकर डाबर इंडिया ने पतंजलि पर मानहानि और अनफेयर कॉम्पिटिशन का केस किया है।
गुरुवार (6 नवंबर) को दिल्ली हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस तेजस करिया ने कहा कि ऐड में दूसरे ब्रांड्स को ‘धोखा’ कहना गलत है, क्योंकि ये शब्द नकारात्मक और अपमानजनक है। फिलहाल कोर्ट ने विज्ञापन पर अंतरिम रोक लगाने पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
कोर्ट बोला- बाकी च्यवनप्राश को धोखा कैसे बोल दोगे?
जस्टिस तेजस करिया की बेंच ने पतंजलि के सीनियर एडवोकेट राजीव नायर से सवाल किए। कोर्ट ने कहा, ‘इनफीरियर शब्द इस्तेमाल कर लो ना, इसमें क्या दिक्कत है? ये तो विज्ञापन वाली बात का मतलब ही नहीं निकालता।
आप कह रहे हो कि सब धोखा हैं और मैं ही असली वाला हूं। बाकी सारे च्यवनप्राश को धोखा कैसे बोल दोगे? कम गुणवत्ता वाला कह सकते हो, लेकिन फ्रॉड तो मत कहो… डिक्शनरी में धोखा के अलावा कोई और शब्द नहीं मिला क्या?’