नई दिल्ली, 05 नवम्बर 2025 । टेक्नोलॉजी जगत में एक क्रांतिकारी कदम लेते हुए गूगल ने घोषणा की है कि कंपनी अब अंतरिक्ष (Space) में AI Data Centers स्थापित करेगी। यह दुनिया की पहली ऐसी योजना है जिसमें क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पृथ्वी के बजाय अंतरिक्ष में संचालित किया जाएगा।
गूगल के मुताबिक, आने वाले वर्षों में इंटरनेट डेटा के बढ़ते दबाव, साइबर सुरक्षा चुनौतियों, और हाई-परफॉर्मेंस AI प्रोसेसिंग को ध्यान में रखते हुए अंतरिक्ष में डेटा सेंटर बनाना भविष्य की आवश्यकता है।
टेक कंपनी गूगल अब अंतरिक्ष में डेटा सेंटर बनाने जा रही है। इस प्रोजेक्ट को ‘सनकैचर’ नाम दिया गया है। गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने X पर पोस्ट शेयर कर इसकी जानकारी दी।
इस प्रोजेक्ट के तहत गूगल स्पेस में सोलर पैनल से लैस सैटेलाइट्स भेजेगी। यानी, बिजली के लिए सूर्य की रोशनी का इस्तेमाल होगा। इन सैटेलाइट्स में गूगल के लेटेस्ट AI चिप्स फिट किए जाएंगे। इसे ट्रिलियम टीपीयू कहते हैं। ये चिप्स AI के कामों के लिए बनाए गए हैं।
स्पेस में भेजे जाने वाले ये सैटेलाइट्स एक-दूसरे से फ्री-स्पेस ऑप्टिकल लिंक्स नाम की तकनीक से जुड़ेंगे। मतलब, लेजर लाइट की मदद से बिना तारों के हाई-स्पीड डेटा शेयर करेंगे। इससे AI की कंप्यूटिंग पावर को ज्यादा बड़ा और तेज बनाया जा सकेगा।
आसान शब्दों में कहें तो गूगल पृथ्वी पर बिजली की कमी या अन्य दिक्कतों से बचने के लिए स्पेस में सूरज की फ्री एनर्जी यूज करके AI को सुपरफास्ट बनाना चाहती है।
हमारे TPUs अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहे: पिचाई
सुंदर पिचाई ने X पर लिखा, ‘हमारे TPUs अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहे हैं। क्वांटम कंप्यूटिंग से सेल्फ ड्राइविंग तक मूनशॉट्स की हिस्ट्री से इंस्पायर्ड प्रोजेक्ट सनकैचर स्पेस में स्केलेबल ML सिस्टम बनाएगा। सूरज की पावर हार्नेस करेंगे, लेकिन कॉम्प्लेक्स इंजीनियरिंग चैलेंज सॉल्व करने होंगे।’
प्रोजेक्ट सनकैचर क्या है, कैसे काम करेगा
प्रोजेक्ट सनकैचर गूगल का एक रिसर्च आइडिया है। जिसके तहत छोटे-छोटे सैटेलाइट्स को लो अर्थ ऑर्बिट यानी सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (SSO) में लॉन्च किया जाएगा, जहां हमेशा सूरज की रोशनी मिलती रहे। हर सैटेलाइट में सोलर पैनल और गूगल के ट्रिलियम TPUs चिप लगे होंगे, जो AI ट्रेनिंग के लिए बनाए गए हैं। यह सैटेलाइट्स एक-दूसरे से ऑप्टिकल लिंक्स से जुड़ेंगे।
अगर यह तकनीक सफल होती है, तो भारत जैसे बड़े डिजिटल बाजारों में डेटा सुरक्षा, स्टोरेज और AI एप्लिकेशन की गुणवत्ता में बड़ा सुधार आ सकता है। भविष्य में भारतीय कंपनियाँ भी स्पेस-आधारित क्लाउड सर्विस का लाभ ले सकती हैं।
गूगल ने कहा कि यह मिशन आने वाले दशक में टेस्टिंग फेज के बाद पूर्ण रूप से सक्रिय हो सकता है। अभी इसकी शुरुआती तकनीकी तैयारी और सैटेलाइट आधारित इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम जारी है।