अफगानिस्तान , 24 अक्टूबर 2025 । अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव में अब पानी का विवाद नया मोड़ ले चुका है। अफगानिस्तान ने आधिकारिक रूप से पाकिस्तान को जल आपूर्ति देने से इनकार कर दिया है, जिससे दोनों देशों के संबंध और बिगड़ने की आशंका बढ़ गई है। यह फैसला काबुल सरकार ने सिंचाई और जल संसाधनों के मुद्दे पर बढ़ते मतभेदों के बीच लिया है।
भारत के बाद अब अफगानिस्तान भी पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को रोकने के लिए डैम बनाने की तैयारी कर रहा है। अफगान सूचना मंत्रालय ने गुरुवार को X पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी।
सूचना मंत्रालय ने बताया कि तालिबान के सर्वोच्च नेता मावलवी हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने कुनार नदी पर जल्द से जल्द बांध बनाने का आदेश दिया है।
मंत्रालय के उपमंत्री मुहाजिर फराही ने गुरुवार को बताया कि पानी और ऊर्जा मंत्रालय को घरेलू कंपनियों को ठेका देकर बांध निर्माण जल्दी शुरू करने को कहा गया है। विदेशी कंपनियों का इंतजार नहीं करना है। अफगानिस्तान ने यह फैसला हाल में हुए संघर्ष के बाद लिया है।
9 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक चले झड़पों में अफगानिस्तान के 37 नागरिक मारे गए और 425 घायल हुए थे। वहीं, भारत ने भी पहलगाम आतंकी हमले के बाद 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को स्थगित कर पाकिस्तान की ओर जाने वाला पानी रोक दिया था।
कुनार नदी का 70-80% पानी पाकिस्तान इस्तेमाल करता
480 किलोमीटर लंबी कुनार नदी अफगानिस्तान से निकलकर पाकिस्तान में चितराल नदी बनकर काबुल नदी में मिलती है। कुनार नदी का 70-80% पानी पाकिस्तान में आता है।
यह काबुल नदी फिर सिंधु नदी में शामिल होती है। अगर अफगानिस्तान बांध बनाकर कुनार का पानी रोकता है, तो पाकिस्तान को गंभीर नुकसान होगा।
इसका सीधा असर खैबर पख्तूनख्वा (KPK) पर पड़ेगा। इसके बाजौर, मोहम्मद जैसे इलाकों में खेती पूरी तरह इसी नदी पर निर्भर है। सिंचाई बंद होने से फसलें बर्बाद होने का खतरा बढ़ जाएगा।
इसके अलावा, पानी रोकने से पाकिस्तान के चितराल जिले में कुनार नदी पर चल रहे 20 से ज्यादा छोटे हाइडल प्रोजेक्ट प्रभावित होंगे। ये सभी प्रोजेक्ट रन-ऑफ-रिवर हैं, यानी यह सीधे नदी के बहाव से बिजली बनाते हैं।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि दक्षिण एशिया पहले ही जल संकट और जल कूटनीति (Water Diplomacy) के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच यह नया टकराव न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर असर डाल सकता है।
संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय विशेषज्ञों ने दोनों देशों से संवाद के माध्यम से इस विवाद को सुलझाने की अपील की है। यदि यह मसला जल्द नहीं सुलझा, तो सीमावर्ती इलाकों में कृषि, बिजली उत्पादन और नागरिक आपूर्ति पर गहरा असर पड़ सकता है।