GSI रिपोर्ट का खुलासा: उत्तराखंड के पहाड़ गंभीर खतरे में

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उत्तराखंड । 01 अक्टूबर 25 । भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्थान (GSI) की हालिया रिपोर्ट ने उत्तराखंड के पहाड़ों को लेकर गंभीर चिंता जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के कई पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन, भू-क्षरण और जलवायु परिवर्तन के चलते अस्थिरता बढ़ रही है, जिससे स्थानीय आबादी और पर्यावरण दोनों खतरे में हैं।

उत्तराखंड के पहाड़ अब गंभीर खतरे में हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य का लगभग 22% हिस्सा हाई लैंडस्लाइड जोन में है।

इसमें चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और उत्तरकाशी जिले हैं, जहां करीब 15 लाख लोग रहते हैं। यहां हर साल नई-नई दरारें, टूटती सड़कें व उफान मारती नदियां आपदा का संकेत देती रहती हैं।

रिपोर्ट बताती है कि राज्य का 32% हिस्सा मीडियम और 46% हिस्सा कम खतरे में है। यानी करीब पूरा राज्य भूस्खलन की जद में है। भूस्खलन पर संसद में पेश रिपोर्ट में GSI ने 91,000 भूस्खलनों का डेटा जुटाया है।

केदारनाथ धाम तक का सफर भी अब बेहद खतरनाक हो गया है। रुद्रप्रयाग जिले में हाईवे पर 51 डेंजर जोन बन चुके हैं, जिनमें से 13 इस साल मानसून में बने हैं।

विकास योजनाओं का वैज्ञानिक आकलन जरूरी

भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सती कहते हैं- विकास योजनाओं का वैज्ञानिक आकलन जरूरी है। हिमाचल का 29% क्षेत्र भी उच्च भूस्खलन खतरे में है। लद्दाख और नागालैंड के 21-21% हिस्से पर भी यही संकट मंडरा रहा है। रिपोर्ट में सुझाव है कि संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें जोनिंग नियमों के तहत विकसित करें और ढलानों को स्थिर बनाने के उपाय किए जाएं।

वो 14 कारण, जिससे ये हालात पैदा हुए

1. पहाड़ों की चट्टानें कमजोर और टूटी-फूटी हैं, इसलिए बहुत जल्दी खिसक जाती हैं।

2. बहुत तेज या लंबी बारिश होने के कारण मिट्टी पानी से भरकर फिसल जाती है।

3. बादल फटना और थोड़े समय में ही भारी बरसात ढलानों को तोड़ देती है।

4. सड़क बनाने के लिए पहाड़ को खड़ा काटने से ढलान अस्थिर हो जाती है।

5. नदियां नीचे से किनारा काटती हैं, तो ऊपर की जमीन ढह जाती है।

6. निर्माण का मलबा ढलान पर फेंकने से वजन बढ़ता है। पानी का रास्ता रुक जाता है।

7. जंगल कटने से पेड़ों की जड़ें नहीं बचतीं, मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है।

8. बार-बार छोटे भूकंप या से ढलान ढीली पड़ जाती है।

9. ऊंचाई पर बर्फ जमना-पिघलना (ठंड–गर्मी) चट्टानों में दरारें बढ़ा देता है।

10. ढलानों का पानी सही तरह बह न पाए तो मिट्टी गीली होकर बह जाती है।

11. बिना योजना के भारी इमारतें, होटल और पार्किंग से ढलानों पर ज्यादा बोझ।

12. खनन, ब्लास्टिंग और सुरंग खोद जाने से जमीन हिलती और टूटती रहती है।

13. जलविद्युत परियोजनाएं स्थानीय भू-जल व ढलान की स्थिति को बदलती हैं।

14. जलवायु परिवर्तन से चरम बारिश जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। मोड़ों पर जाल न होने से ढलान फिसलता है।

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