नई दिल्ली, कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन खेल जगत में बेहद प्रतिष्ठित माना जाता है। यह केवल खेल प्रतियोगिता नहीं बल्कि सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आपसी सहयोग का प्रतीक भी है। 2026 और 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी को लेकर जिस तरह असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, उसमें अब भारत और नाइजीरिया दोनों ने मेजबानी का प्रस्ताव रखकर एक नई उम्मीद जगाई है।
भारत की मेजबानी की महत्वाकांक्षा
भारत पहले भी 2010 में दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी कर चुका है। उस आयोजन ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पहचान दिलाई थी, हालांकि तैयारियों और भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर विवाद भी सामने आए थे। इसके बावजूद भारत ने दिखाया था कि वह बड़े पैमाने पर बहुराष्ट्रीय खेल आयोजन कराने में सक्षम है।
अब एक बार फिर भारत की ओर से मेजबानी की दावेदारी करने का मतलब है कि देश अपनी खेल संरचना और अंतरराष्ट्रीय छवि को और मजबूत करना चाहता है। दिल्ली, अहमदाबाद, भुवनेश्वर और बेंगलुरु जैसे शहर पहले से ही खेल आयोजन की बेहतर सुविधाओं से लैस हैं, जिनके आधार पर भारत का दावा मजबूत नजर आता है।
नाइजीरिया का प्रस्ताव
नाइजीरिया की दावेदारी भी खास मायने रखती है। अफ्रीकी महाद्वीप में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन कभी नहीं हुआ है। अगर नाइजीरिया को मेजबानी मिलती है, तो यह न केवल अफ्रीका के लिए ऐतिहासिक होगा बल्कि कॉमनवेल्थ परिवार में समान प्रतिनिधित्व और संतुलन का प्रतीक भी बनेगा। नाइजीरिया का खेल इतिहास खासा समृद्ध है और फुटबॉल, एथलेटिक्स और वेटलिफ्टिंग जैसे खेलों में उसने दुनिया को कई स्टार खिलाड़ी दिए हैं।
हालांकि, नाइजीरिया को बुनियादी ढांचे, सुरक्षा और आर्थिक संसाधनों की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
भारत और नाइजीरिया की प्रतिस्पर्धा
भारत और नाइजीरिया दोनों के प्रस्तावों ने कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन (CGF) को नए विकल्प दिए हैं। भारत के पास मजबूत खेल ढांचा, संसाधन और अनुभव है। वहीं नाइजीरिया अफ्रीकी प्रतिनिधित्व की भावना को आगे बढ़ा रहा है। दोनों देशों की दावेदारी इस बार के कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर खास प्रतिस्पर्धा पैदा कर रही है।
खेल और कूटनीति का मेल
ऐसे आयोजनों की मेजबानी केवल खेल तक सीमित नहीं रहती। यह देश की अंतरराष्ट्रीय छवि, आर्थिक निवेश, पर्यटन और सांस्कृतिक प्रचार के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। भारत के लिए यह अवसर अपनी सॉफ्ट पावर को प्रदर्शित करने का होगा, वहीं नाइजीरिया के लिए यह अफ्रीकी महाद्वीप को वैश्विक खेल मानचित्र पर लाने का मौका बनेगा।
भारत और नाइजीरिया दोनों के प्रस्ताव से साफ है कि कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी को लेकर उत्साह और प्रतिस्पर्धा दोनों बनी हुई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि CGF किस देश को मेजबानी सौंपता है। अगर भारत को यह जिम्मेदारी मिलती है, तो यह उसके खेल इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय होगा। वहीं नाइजीरिया को मौका मिला तो यह अफ्रीका के लिए गौरव का क्षण साबित होगा।