जिनपिंग की सीक्रेट चिट्ठी से सुधरे भारत-चीन रिश्ते

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नई दिल्ली। 29 अगस्त 2025 ।भारत और चीन के रिश्तों में लंबे समय से तनाव बना हुआ था, खासकर लद्दाख सीमा विवाद के बाद दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी दिखाई दे रही थी। लेकिन अब हालात में सुधार की उम्मीद जगने लगी है। सूत्रों के अनुसार, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक गोपनीय चिट्ठी लिखी है, जिसने दोनों देशों के बीच संवाद का नया दरवाजा खोला है।

चिट्ठी का महत्व

इस पत्र में जिनपिंग ने भारत-चीन संबंधों को स्थिर और संतुलित बनाने की इच्छा जताई है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि एशिया के दो बड़े देशों के बीच तनाव न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि पूरे एशियाई क्षेत्र की शांति और विकास को भी प्रभावित करता है। जिनपिंग ने संकेत दिया है कि चीन अब विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्ष में है।

सीमा विवाद पर नरमी

सूत्रों के मुताबिक, पत्र में सीमा विवाद को लेकर भी सकारात्मक रुख दिखाया गया है। जिनपिंग ने कहा है कि सीमा पर शांति और स्थिरता ही दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की पहली शर्त है। इस संदर्भ में उन्होंने सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर संवाद बढ़ाने पर जोर दिया है।

आर्थिक सहयोग का प्रस्ताव

जिनपिंग ने आर्थिक मोर्चे पर भी सहयोग बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। चीन चाहता है कि भारत और चीन मिलकर व्यापार और निवेश को नई ऊँचाइयों तक ले जाएँ। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे की पूरक है और अगर आपसी सहयोग बढ़ता है तो एशिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।

मोदी सरकार का रुख

भारत सरकार ने इस पत्र पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने संकेत दिया है कि भारत संवाद और शांति का हमेशा समर्थक रहा है। मोदी सरकार मानती है कि यदि चीन अपनी प्रतिबद्धताओं पर अमल करता है तो भारत भी सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ेगा।

सामरिक दृष्टिकोण

विशेषज्ञों का मानना है कि जिनपिंग की यह चिट्ठी भारत-चीन रिश्तों में नई शुरुआत साबित हो सकती है। हालांकि, भारत के लिए यह देखना अहम होगा कि चीन केवल कूटनीतिक संदेश देता है या फिर जमीनी स्तर पर भी अपने रवैये में बदलाव लाता है।

जिनपिंग की सीक्रेट चिट्ठी को भारत-चीन संबंधों में एक संभावित मोड़ माना जा रहा है। यह पहल अगर व्यवहारिक साबित होती है तो एशिया की शांति, स्थिरता और विकास में बड़ा योगदान दे सकती है। अब सबकी निगाहें दोनों देशों के अगले कदमों पर टिकी होंगी।

PM मोदी तक पहुंचाई गई चिट्ठी

रिपोर्ट में एक भारतीय अधिकारी के हवाले से दावा किया गया है कि यह चिट्ठी PM मोदी तक भी पहुंचाई गई थी, ताकि वे इस बात का आकलन कर सकें कि रिश्तों को बेहतर बनाने की कितनी संभावनाएं हैं।

चिट्ठी में चीन ने खास तौर पर इस चिंता को जताया था कि भारत और अमेरिका के बीच होने वाला कोई भी समझौता चीन के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसमें में यह भी लिखा गया था कि बीजिंग की ओर से संबंध सुधारने की कोशिशों का नेतृत्व एक प्रांतीय अधिकारी करेगा।

दो फैसलों से बढ़ी भारत की नाराजगी

ब्लूमबर्ग का कहना है कि जून तक भारत ने जिनपिंग की चिट्ठी का कोई ठोस जवाब नहीं दिया था, लेकिन तब हालात तेजी से बदले भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक बातचीत विवादों में फंस गई।

मैगजीन ने इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स के हवाले से बताया कि भारत खास तौर पर दो बातों से नाराज था। पहले तो ट्रम्प ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान में सीजफायर कराया, जिसे भारत ने पूरी तरह से खारिज कर दिया था।

भारत की स्थिति को कमजोर करने की कोशिशों से मोदी सरकार पहले ही नाराज थी, फिर इसके बाद भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया गया।

इन दोनों फैसलों ने भारत-अमेरिका संबंधों में असंतोष और तनाव को हवा दी थी। इसके बाद भारत ने जून में चीन की ओर से आई पहल का गंभीरता से जवाब देना शुरू किया।

7 साल बाद चीन जा रहे PM मोदी इसके बाद हालात तेजी से बदले। अगस्त आते-आते भारत और चीन ने 2020 के गलवान घाटी संघर्ष से आगे बढ़ने के लिए सीमा विवाद सुलझाने की कोशिशों को दोगुना करने पर सहमति जताई। और अब PM मोदी सात साल बाद चीन की यात्रा पर जा रहे हैं।

हालांकि, रिपोर्ट यह भी मानती है कि ट्रम्प के टैरिफ से पहले ही भारत और चीन गंभीर बातचीत में जुटे हुए थे। पिछले साल दोनों देशों ने लद्दाख में जारी गतिरोध को आंशिक तौर पर हल करने के लिए एक समझौता किया था। इसी समझौते ने मोदी और शी जिनपिंग की पहली सीधी मुलाकात का रास्ता खोला।

अब प्रधानमंत्री मोदी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) समिट के लिए चीन जा रहे हैं। वहां उनकी मुलाकात जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन से होगी। इस मुलाकात को अमेरिका कड़ी नजर से देख रहा है, क्योंकि यह उसके लिए रणनीतिक चिंता का विषय बन सकता है।

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